—◆◆◆— महकता था मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबू से वह बचपन का आंगन कहां से लाऊं?? आस-पड़ोस को भी दुलारता था जो प्यार से, वह

—◆◆◆— महकता था मिट्टी की सौंधी सौंधी खुशबू से वह बचपन का आंगन कहां से लाऊं?? आस-पड़ोस को भी दुलारता था जो प्यार से, वह
—◆◆◆— अक्सर सोचता हूं मैं आखिर तुम्हारी मेरी जिंदगी का सच क्या है तुम्हारे कुछ बेबाक से सवाल मेरेे मन में उठते अनवट से बवाल।तुम्हारी
—◆◆◆— आजकल …खिड़कियों पर गौरेया नहीं दिखती आजकल …पैरों में घर की बिल्लियां नहीं खेलती आजकल …घरों में रिश्तों की महक नहीं खिलती आजकल …..कुछ
—◆◆◆— माना कि ग़म है बहुत ज़िंदगी मेंतकलीफ़ें आज भी है काफ़ी यह दौर भी निकल जाएगाथोडा मुस्कुराओ तो क्या हो होती नहीं मुरादें पूरी