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🌟स्वरांजली🌟 शब्दों की गूँज🌟
मोहब्ब़तें मोहताज़ दिलों के शामियानों में
रुस़वा इसे न करो अ़रमानों के ठिकाऩों मेंबात इज़हार की आएगी एक दिन काफ़िर
मोहब्ब़तें ब़ेसुमार ज़ंजीरों मे तहख़ानों मेंऱूठी हो किस्म़त अंदाज़े ब़याँ बदल डालो
सरग़ोशियों से भरी आद़त क़ुचल डालोन बर्ब़ाद करो ख़ुद को ज़ालिमों की तरह
रुख़े नक्स़ीर न आब़ाद करो मयख़ानों मेमोहब्ब़तें मोहताज़ दिलों के शामियानों में
रुस़वा इसे न करो अ़रमानों के ठिकाऩों मेंमोहब्ब़तें इम्त़ेहान नूरेज़हाँ से वाकिफ़ हैं
रुख़े नज़्म नब़्ज मे लहू बन के काब़िज हैसजद़ा करो इनकी फ़िक्र भी करो नाज़िर
जो हाज़िर कर न सके इनके शयनख़ानों मेंमोहब्ब़तें मोहताज़ दिलों के शामियानों में
रुस़वा इसे न करो अ़रमानों के ठिकाऩों में
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रचनाकार [{ कवयित्री/कवि }] :- प्रकाश शुक्ला✍
धन्यवाद स्वरा जी
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