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काश वो दिन आये,
माँ आये और दे पानी की बाल्टी कर उठाये,
हम फिर से ठंड में नहाए,रोज़ रोज़ ना स्कूल जाए,
जल्दी छुट्टी लेकर घर को आये,बाज़ार में पैदल घूम घूम इतराये,
साईकल देखना मुश्किल है आजकल,
जिसे देखकर मन ही मन हर्षाये,बाजार की दुकान घूम टहल कर लौट जाए,
5 रुपये के सेव परमल बगीचे में बैठकर खाये,अरे पिक्चर भी तो देख आये,
चल अक्षय कुमार का खिलाड़ी वाला रोल निभाये,दिनभर के थके हारे घर को जैसे आये,
पहले तो दरवाजा खटखटाये,
फिर माँ की डाँट भी हमें गुदगुदाये,पिताजी को देख दिल वहीं सहम जाए,
चुपचाप बिस्तरों में लिपटकर सो जाए,अगले दिन उठकर उजाले,
चल स्कूल को लौट आए,मास्टरजी पूछे क्यों तुम इतने लेट आये,
पड़ोसी की बकरी खो गयी साहेब,
उसे ढूंढने पूरा शहर साथ में जाए,हर मास्टर से डंडे खाकर,
चल अमिताभ का डॉन वाला रोल जिया जाए,गली क्रिकेट की दुनिया में,
हम गिल्ली डंडा खेल आये,
फिर से हसीन वादियों में,
चल कहीं घूमकर आये,क़ाश वो दिन लौट आये,
जब जहाँ चाहे हम,
अपना जहान बसाए,
काश वो दिन आये।।
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#स्वरा
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